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ਜਿਸ ਕੀ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸੁ ਕਰਣੈਹਾਰੁ ॥जिस की स्रिसटि सु करणैहारु ॥जिसकी यह सृष्टि है, वही उसका सृजनहार है। ਅਵਰ ਨ ਬੂਝਿ ਕਰਤ ਬੀਚਾਰੁ ॥अवर न बूझि करत बीचारु ॥कोई दूसरा उसको नहीं समझता, चाहे वह कैसे विचार करे। ਕਰਤੇ ਕੀ ਮਿਤਿ ਨ ਜਾਨੈ ਕੀਆ ॥करते की मिति न जानै कीआ ॥करतार का विस्तार, उसका उत्पन्न

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ਨਾਨਕ ਕੈ ਮਨਿ ਇਹੁ ਅਨਰਾਉ ॥੧॥नानक कै मनि इहु अनराउ ॥१॥नानक के मन में यही अभिलाषा है ॥ १॥ ਮਨਸਾ ਪੂਰਨ ਸਰਨਾ ਜੋਗ ॥मनसा पूरन सरना जोग ॥भगवान मनोकामना पूर्ण करने वाला एवं शरण देने योग्य है। ਜੋ ਕਰਿ ਪਾਇਆ ਸੋਈ ਹੋਗੁ ॥जो करि पाइआ सोई होगु ॥जो कुछ ईश्वर ने अपने हाथ से लिख

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ਪੁਰਬ ਲਿਖੇ ਕਾ ਲਿਖਿਆ ਪਾਈਐ ॥पुरब लिखे का लिखिआ पाईऐ ॥तुझे वह कुछ मिलेगा, जो तेरे पूर्व जन्म के कर्मों द्वारा लिखा हुआ है। ਦੂਖ ਸੂਖ ਪ੍ਰਭ ਦੇਵਨਹਾਰੁ ॥दूख सूख प्रभ देवनहारु ॥प्रभु दुःख एवं सुख देने वाला है। ਅਵਰ ਤਿਆਗਿ ਤੂ ਤਿਸਹਿ ਚਿਤਾਰੁ ॥अवर तिआगि तू तिसहि चितारु ॥अन्य सब कुछ छोड़कर तू उसकी

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ਆਪੇ ਆਪਿ ਸਗਲ ਮਹਿ ਆਪਿ ॥आपे आपि सगल महि आपि ॥सब कुछ वह अपने आप से ही है। वह स्वयं ही सब (जीव-जन्तुओं) में विद्यमान है। ਅਨਿਕ ਜੁਗਤਿ ਰਚਿ ਥਾਪਿ ਉਥਾਪਿ ॥अनिक जुगति रचि थापि उथापि ॥अनेक युक्तियों द्वारा वह सृष्टि की रचना करता एवं उसका नाश भी करता है। ਅਬਿਨਾਸੀ ਨਾਹੀ ਕਿਛੁ ਖੰਡ ॥अबिनासी

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ਜਿਸ ਨੋ ਕ੍ਰਿਪਾ ਕਰੈ ਤਿਸੁ ਆਪਨ ਨਾਮੁ ਦੇਇ ॥जिस नो क्रिपा करै तिसु आपन नामु देइ ॥परमात्मा जिस पर अपनी कृपा करता है, उसे ही अपना नाम दे देता है। ਬਡਭਾਗੀ ਨਾਨਕ ਜਨ ਸੇਇ ॥੮॥੧੩॥बडभागी नानक जन सेइ ॥८॥१३॥हे नानक ! ऐसा व्यक्ति बड़ा भाग्यशाली है॥ ८ ॥ १३॥ ਸਲੋਕੁ ॥सलोकु ॥श्लोक ॥ ਤਜਹੁ ਸਿਆਨਪ

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ਨਾਨਕ ਸੰਤ ਭਾਵੈ ਤਾ ਓਇ ਭੀ ਗਤਿ ਪਾਹਿ ॥੨॥नानक संत भावै ता ओइ भी गति पाहि ॥२॥हे नानक ! यदि संत को भला लगे तो निंदक भी मोक्ष प्राप्त कर लेता है॥ २ ॥ ਸੰਤ ਕਾ ਨਿੰਦਕੁ ਮਹਾ ਅਤਤਾਈ ॥संत का निंदकु महा अतताई ॥संत की निन्दा करने वाला सबसे बुरे कर्म करने वाला महानीच

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ਤ੍ਰਿਪਤਿ ਨ ਆਵੈ ਮਾਇਆ ਪਾਛੈ ਪਾਵੈ ॥त्रिपति न आवै माइआ पाछै पावै ॥धन-दौलत की तलाश में उसकी तृप्ति नहीं होती। ਅਨਿਕ ਭੋਗ ਬਿਖਿਆ ਕੇ ਕਰੈ ॥अनिक भोग बिखिआ के करै ॥इन्सान अधिकतर विषय-विकारों के भोग में लगा रहता है, ਨਹ ਤ੍ਰਿਪਤਾਵੈ ਖਪਿ ਖਪਿ ਮਰੈ ॥नह त्रिपतावै खपि खपि मरै ॥परन्तु वह तृप्त नहीं होता और

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ਨਾਨਾ ਰੂਪ ਜਿਉ ਸ੍ਵਾਗੀ ਦਿਖਾਵੈ ॥नाना रूप जिउ स्वागी दिखावै ॥बहुरूपिए की भाँति वह अत्याधिक रूप धारण करता हुआ भी दिखाई देता है। ਜਿਉ ਪ੍ਰਭ ਭਾਵੈ ਤਿਵੈ ਨਚਾਵੈ ॥जिउ प्रभ भावै तिवै नचावै ॥जिस तरह प्रभु को उपयुक्त लगता है, वैसे ही नचाता है ਜੋ ਤਿਸੁ ਭਾਵੈ ਸੋਈ ਹੋਇ ॥जो तिसु भावै सोई होइ ॥जैसे

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ਅੰਤੁ ਨਹੀ ਕਿਛੁ ਪਾਰਾਵਾਰਾ ॥अंतु नही किछु पारावारा ॥उसकी ताकत का कोई ओर-छोर नहीं। ਹੁਕਮੇ ਧਾਰਿ ਅਧਰ ਰਹਾਵੈ ॥हुकमे धारि अधर रहावै ॥अपने हुक्म द्वारा उसने धरती की स्थापना की है और बिना किसी सहारे के उसने (टिकाया) रखा हुआ है। ਹੁਕਮੇ ਉਪਜੈ ਹੁਕਮਿ ਸਮਾਵੈ ॥हुकमे उपजै हुकमि समावै ॥जो कुछ उसके हुक्म द्वारा उत्पन्न

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ਕਈ ਕੋਟਿ ਦੇਵ ਦਾਨਵ ਇੰਦ੍ਰ ਸਿਰਿ ਛਤ੍ਰ ॥कई कोटि देव दानव इंद्र सिरि छत्र ॥कई करोड़ देवते, राक्षस एवं इन्द्र हैं, जिनके सिर पर छत्र हैं। ਸਗਲ ਸਮਗ੍ਰੀ ਅਪਨੈ ਸੂਤਿ ਧਾਰੈ ॥सगल समग्री अपनै सूति धारै ॥ईश्वर ने सारी सृष्टि को अपने (हुक्म के) धागे में पिरोया हुआ है। ਨਾਨਕ ਜਿਸੁ ਜਿਸੁ ਭਾਵੈ ਤਿਸੁ ਤਿਸੁ

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