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ਤਿਸ ਕਾ ਨਾਮੁ ਸਤਿ ਰਾਮਦਾਸੁ ॥तिस का नामु सति रामदासु ॥उसका नाम सत्य ही रामदास है। ਆਤਮ ਰਾਮੁ ਤਿਸੁ ਨਦਰੀ ਆਇਆ ॥आतम रामु तिसु नदरी आइआ ॥उसे अपने अन्तर में ही राम दिखाई दे गया है। ਦਾਸ ਦਸੰਤਣ ਭਾਇ ਤਿਨਿ ਪਾਇਆ ॥दास दसंतण भाइ तिनि पाइआ ॥सेवकों का सेवक होने के स्वभाव से उसने ईश्वर

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ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਆਪਿ ਨਿਰੰਕਾਰੁ ॥ब्रहम गिआनी आपि निरंकारु ॥ब्रह्मज्ञानी स्वयं ही निरंकार है। ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਕੀ ਸੋਭਾ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਬਨੀ ॥ब्रहम गिआनी की सोभा ब्रहम गिआनी बनी ॥ब्रह्मज्ञानी की शोभा केवल ब्रह्मज्ञानी को ही बनती है। ਨਾਨਕ ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਸਰਬ ਕਾ ਧਨੀ ॥੮॥੮॥नानक ब्रहम गिआनी सरब का धनी ॥८॥८॥हे नानक ! ब्रह्मज्ञानी सबका मालिक है॥

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ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਕੀ ਦ੍ਰਿਸਟਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਬਰਸੀ ॥ब्रहम गिआनी की द्रिसटि अम्रितु बरसी ॥ब्रह्मज्ञानी की दृष्टि से अमृत बरसता है। ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਬੰਧਨ ਤੇ ਮੁਕਤਾ ॥ब्रहम गिआनी बंधन ते मुकता ॥ब्रह्मज्ञानी बन्धनों से मुक्त रहता है। ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਕੀ ਨਿਰਮਲ ਜੁਗਤਾ ॥ब्रहम गिआनी की निरमल जुगता ॥ब्रह्मज्ञानी का जीवन-आचरण बड़ा पवित्र है। ਬ੍ਰਹਮ ਗਿਆਨੀ ਕਾ ਭੋਜਨੁ

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ਨਾਨਕ ਸਾਧ ਕੈ ਸੰਗਿ ਸਫਲ ਜਨੰਮ ॥੫॥नानक साध कै संगि सफल जनम ॥५॥हे नानक ! साधुओं की संगति में रहने से मनुष्य-जन्म सफल हो जाता है॥ ५॥ ਸਾਧ ਕੈ ਸੰਗਿ ਨਹੀ ਕਛੁ ਘਾਲ ॥साध कै संगि नही कछु घाल ॥साधुओं की संगति करने से मनुष्य को मेहनत नहीं करनी पड़ती। ਦਰਸਨੁ ਭੇਟਤ ਹੋਤ ਨਿਹਾਲ ॥दरसनु

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ਪ੍ਰਭ ਕਿਰਪਾ ਤੇ ਹੋਇ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥प्रभ किरपा ते होइ प्रगासु ॥प्रभु की कृपा से प्रकाश होता है। ਪ੍ਰਭੂ ਦਇਆ ਤੇ ਕਮਲ ਬਿਗਾਸੁ ॥प्रभू दइआ ते कमल बिगासु ॥प्रभु की कृपा से हृदय-कमल प्रफुल्लित होता है। ਪ੍ਰਭ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਬਸੈ ਮਨਿ ਸੋਇ ॥प्रभ सुप्रसंन बसै मनि सोइ ॥जब प्रभु सुप्रसन्न होता है, तो वह मनुष्य के हृदय

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ਮੁਖਿ ਤਾ ਕੋ ਜਸੁ ਰਸਨ ਬਖਾਨੈ ॥मुखि ता को जसु रसन बखानै ॥अपने मुँह एवं जिव्हा से उसका यश सदैव बखान कर। ਜਿਹ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਤੇਰੋ ਰਹਤਾ ਧਰਮੁ ॥जिह प्रसादि तेरो रहता धरमु ॥जिसकी कृपा से तेरा धर्म कायम रहता है, ਮਨ ਸਦਾ ਧਿਆਇ ਕੇਵਲ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮੁ ॥मन सदा धिआइ केवल पारब्रहमु ॥हे मेरे मन ! तू

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ਮਿਥਿਆ ਨੇਤ੍ਰ ਪੇਖਤ ਪਰ ਤ੍ਰਿਅ ਰੂਪਾਦ ॥मिथिआ नेत्र पेखत पर त्रिअ रूपाद ॥वे नेत्र मिथ्या हैं, जो पराई नारी का सौंदर्य रूप देखते हैं। ਮਿਥਿਆ ਰਸਨਾ ਭੋਜਨ ਅਨ ਸ੍ਵਾਦ ॥मिथिआ रसना भोजन अन स्वाद ॥वह जिव्हा भी मिथ्या है, जो पकवान एवं दूसरे स्वाद भोगती है। ਮਿਥਿਆ ਚਰਨ ਪਰ ਬਿਕਾਰ ਕਉ ਧਾਵਹਿ ॥मिथिआ चरन पर

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ਇਆਹੂ ਜੁਗਤਿ ਬਿਹਾਨੇ ਕਈ ਜਨਮ ॥इआहू जुगति बिहाने कई जनम ॥युक्तियों में मनुष्य ने अनेकों जन्म व्यतीत कर दिए हैं। ਨਾਨਕ ਰਾਖਿ ਲੇਹੁ ਆਪਨ ਕਰਿ ਕਰਮ ॥੭॥नानक राखि लेहु आपन करि करम ॥७॥नानक की विनती है कि हे प्रभु ! अपनी कृपा धारण करके जीव को भवसागर से बचाले॥ ७॥ ਤੂ ਠਾਕੁਰੁ ਤੁਮ ਪਹਿ ਅਰਦਾਸਿ

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ਮੁਖਿ ਅਪਿਆਉ ਬੈਠ ਕਉ ਦੈਨ ॥मुखि अपिआउ बैठ कउ दैन ॥बैठे ही मुँह में भोजन डालने के लिए -तेरी सेवा के लिए दिए हैं। ਇਹੁ ਨਿਰਗੁਨੁ ਗੁਨੁ ਕਛੂ ਨ ਬੂਝੈ ॥इहु निरगुनु गुनु कछू न बूझै ॥यह गुणविहीन मनुष्य किए हुए उपकारों की कुछ भी कद्र नहीं करता। ਬਖਸਿ ਲੇਹੁ ਤਉ ਨਾਨਕ ਸੀਝੈ ॥੧॥बखसि लेहु

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ਅਨਿਕ ਜਤਨ ਕਰਿ ਤ੍ਰਿਸਨ ਨਾ ਧ੍ਰਾਪੈ ॥अनिक जतन करि त्रिसन ना ध्रापै ॥अनेक यत्न करने से भी तृष्णा नहीं बुझती। ਭੇਖ ਅਨੇਕ ਅਗਨਿ ਨਹੀ ਬੁਝੈ ॥भेख अनेक अगनि नही बुझै ॥अनेकों धार्मिक वेष बदलने से (तृष्णा की) अग्नि नहीं बुझती। ਕੋਟਿ ਉਪਾਵ ਦਰਗਹ ਨਹੀ ਸਿਝੈ ॥कोटि उपाव दरगह नही सिझै ॥(ऐसे) करोड़ों ही उपायों द्वारा

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