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ਸਕਯਥੁ ਜਨਮੁ ਕਲੵੁਚਰੈ ਗੁਰੁ ਪਰਸੵਿਉ ਅਮਰ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥੮॥ सकयथु जनमु कल्युचरै गुरु परस्यिउ अमर प्रगासु ॥८॥ कवि कल्ह का कथन है कि जिन लोगों को विश्व विख्यात श्री गुरु अमरदास जी के दर्शन प्राप्त हुए, उनका जीवन सफल हो गया है।॥ (Therefore, the poet) Kall says, ‘fruitful is the advent of (that person) who has

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ਸਕਯਥੁ ਜਨਮੁ ਕਲੵੁਚਰੈ ਗੁਰੁ ਪਰਸੵਿਉ ਅਮਰ ਪ੍ਰਗਾਸੁ ॥੮॥सकयथु जनमु कल्युचरै गुरु परस्यिउ अमर प्रगासु ॥८॥कवि कल्ह का कथन है कि जिन लोगों को विश्व विख्यात श्री गुरु अमरदास जी के दर्शन प्राप्त हुए, उनका जीवन सफल हो गया है।॥ ਬਾਰਿਜੁ ਕਰਿ ਦਾਹਿਣੈ ਸਿਧਿ ਸਨਮੁਖ ਮੁਖੁ ਜੋਵੈ ॥बारिजु करि दाहिणै सिधि सनमुख मुखु जोवै ॥गुरु अमरदास

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ਇਕੁ ਬਿੰਨਿ ਦੁਗਣ ਜੁ ਤਉ ਰਹੈ ਜਾ ਸੁਮੰਤ੍ਰਿ ਮਾਨਵਹਿ ਲਹਿ ॥इकु बिंनि दुगण जु तउ रहै जा सुमंत्रि मानवहि लहि ॥जो मनुष्य गुरु का उपदेश लेकर एक ईश्वर को समझ लेता है, उसका द्वैतभाव दूर हो जाता है। ਜਾਲਪਾ ਪਦਾਰਥ ਇਤੜੇ ਗੁਰ ਅਮਰਦਾਸਿ ਡਿਠੈ ਮਿਲਹਿ ॥੫॥੧੪॥जालपा पदारथ इतड़े गुर अमरदासि डिठै मिलहि ॥५॥१४॥भाट जालप का

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ਕਹਤਿਅਹ ਕਹਤੀ ਸੁਣੀ ਰਹਤ ਕੋ ਖੁਸੀ ਨ ਆਯਉ ॥कहतिअह कहती सुणी रहत को खुसी न आयउ ॥इनके बड़े-बड़े उपदेश तो सुनने को मिले परन्तु इनके जीवन-आचरण से मन खुश नहीं हुआ (अर्थात् ये बातें तो बड़ी-बड़ी करते थे मगर इनके आचरण से दिल दुखी ही हुआ)। ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਛੋਡਿ ਦੂਜੈ ਲਗੇ ਤਿਨੑ ਕੇ ਗੁਣ ਹਉ

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ਸਤਗੁਰਿ ਦਯਾਲਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਦ੍ਰਿੜ੍ਹ੍ਹਾਯਾ ਤਿਸੁ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ਵਸਿ ਪੰਚ ਕਰੇ ॥सतगुरि दयालि हरि नामु द्रिड़्हाया तिसु प्रसादि वसि पंच करे ॥इनके सच्चे गुरु अमरदास जी ने दयालु होकर मन में हरिनाम ही दृढ़ करवाया, जिसकी कृपा से उन्होंने कामादिक पाँच विकारों को वश में किया। ਕਵਿ ਕਲੵ ਠਕੁਰ ਹਰਦਾਸ ਤਨੇ ਗੁਰ ਰਾਮਦਾਸ ਸਰ ਅਭਰ ਭਰੇ

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ਸੇਜ ਸਧਾ ਸਹਜੁ ਛਾਵਾਣੁ ਸੰਤੋਖੁ ਸਰਾਇਚਉ ਸਦਾ ਸੀਲ ਸੰਨਾਹੁ ਸੋਹੈ ॥सेज सधा सहजु छावाणु संतोखु सराइचउ सदा सील संनाहु सोहै ॥हे गुरु रामदास ! तूने श्रद्धा की सेज को बिछाया, सहज स्वभाव का शामियाना स्थित किया, संतोष को कनातों के रूप में स्थापित किया और शील-सादगी का सदैव कवच धारण किया, जो बहुत सुन्दर लग

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ਨਲੵ ਕਵਿ ਪਾਰਸ ਪਰਸ ਕਚ ਕੰਚਨਾ ਹੁਇ ਚੰਦਨਾ ਸੁਬਾਸੁ ਜਾਸੁ ਸਿਮਰਤ ਅਨ ਤਰ ॥नल्य कवि पारस परस कच कंचना हुइ चंदना सुबासु जासु सिमरत अन तर ॥कवि नल्ह का कथन है कि गुरु रामदास रूपी पारस के स्पर्श से कंचन सरीखा हो गया हूँ, ज्यों चंदन की खुशबू से अन्य पेड़-पौधे खुशबूदार हो जाते हैं।

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ਤਾਰਣ ਤਰਣ ਸਮ੍ਰਥੁ ਕਲਿਜੁਗਿ ਸੁਨਤ ਸਮਾਧਿ ਸਬਦ ਜਿਸੁ ਕੇਰੇ ॥तारण तरण सम्रथु कलिजुगि सुनत समाधि सबद जिसु केरे ॥कलियुग में एकमात्र वही संसार के बन्धनों से मुक्त करने वाला एवं सर्वकला समर्थ है, उसका पावन उपदेश सुनने से जीव प्रभु ध्यान में लीन हो जाता है। ਫੁਨਿ ਦੁਖਨਿ ਨਾਸੁ ਸੁਖਦਾਯਕੁ ਸੂਰਉ ਜੋ ਧਰਤ ਧਿਆਨੁ ਬਸਤ

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ਭੈ ਭਾਇ ਭਗਤਿ ਨਿਹਾਲ ਨਾਨਕ ਸਦਾ ਸਦਾ ਕੁਰਬਾਨ ॥੨॥੪॥੪੯॥भै भाइ भगति निहाल नानक सदा सदा कुरबान ॥२॥४॥४९॥नानक का कथन है कि हम उसकी भाव-भक्ति से निहाल हैं और सदैव उस पर कुर्बान जाते हैं॥२॥४॥४६॥ ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ॥कानड़ा महला ५ ॥कानड़ा महला ५॥ ਕਰਤ ਕਰਤ ਚਰਚ ਚਰਚ ਚਰਚਰੀ ॥करत करत चरच चरच चरचरी ॥लोग परमात्मा

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ਕਾਨੜਾ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੧੦कानड़ा महला ५ घरु १०कानड़ा महला ५ घरु १० ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ੴ सतिगुर प्रसादि॥ ਐਸੋ ਦਾਨੁ ਦੇਹੁ ਜੀ ਸੰਤਹੁ ਜਾਤ ਜੀਉ ਬਲਿਹਾਰਿ ॥ऐसो दानु देहु जी संतहु जात जीउ बलिहारि ॥हे संत पुरुषो ! ऐसा दान दीजिए, जिस पर हमारे प्राण कुर्बान हो जाएँ। ਮਾਨ ਮੋਹੀ ਪੰਚ

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