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ਤੁਧੁ ਥਾਪੇ ਚਾਰੇ ਜੁਗ ਤੂ ਕਰਤਾ ਸਗਲ ਧਰਣ ॥तुधु थापे चारे जुग तू करता सगल धरण ॥तूने ही सतियुग, त्रैता, द्वापर एवं कलियुग की स्थापना की है, तू ही समूची धरती का रचयिता है। ਤੁਧੁ ਆਵਣ ਜਾਣਾ ਕੀਆ ਤੁਧੁ ਲੇਪੁ ਨ ਲਗੈ ਤ੍ਰਿਣ ॥तुधु आवण जाणा कीआ तुधु लेपु न लगै त्रिण ॥जीवों का जन्म-मरण

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ਆਇਆ ਓਹੁ ਪਰਵਾਣੁ ਹੈ ਜਿ ਕੁਲ ਕਾ ਕਰੇ ਉਧਾਰੁ ॥आइआ ओहु परवाणु है जि कुल का करे उधारु ॥उसका ही जन्म सफल है, जो अपनी कुल का उद्धार करता है। ਅਗੈ ਜਾਤਿ ਨ ਪੁਛੀਐ ਕਰਣੀ ਸਬਦੁ ਹੈ ਸਾਰੁ ॥अगै जाति न पुछीऐ करणी सबदु है सारु ॥आगे परलोक में किसी की जाति नहीं पूछी जाती,

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ਬੂਝਹੁ ਗਿਆਨੀ ਬੂਝਣਾ ਏਹ ਅਕਥ ਕਥਾ ਮਨ ਮਾਹਿ ॥बूझहु गिआनी बूझणा एह अकथ कथा मन माहि ॥हे ज्ञानवान् पुरुषो ! यदि बूझना है तो इस अकथनीय कथा को मन में ही बुझ लो। ਬਿਨੁ ਗੁਰ ਤਤੁ ਨ ਪਾਈਐ ਅਲਖੁ ਵਸੈ ਸਭ ਮਾਹਿ ॥बिनु गुर ततु न पाईऐ अलखु वसै सभ माहि ॥गुरु के बिना परम

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ਪਉੜੀ ॥पउड़ी ॥पउड़ी॥ ਤੁਧੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖਿਆ ਜਾਤਿ ਤੂ ਵਰਨਾ ਬਾਹਰਾ ॥तुधु रूपु न रेखिआ जाति तू वरना बाहरा ॥हे इंश्वर ! न कोई तेरा रूप-आकार है, न तेरी कोई जाति है और तू ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र इत्यादि वर्णो से भी रहित है। ਏ ਮਾਣਸ ਜਾਣਹਿ ਦੂਰਿ ਤੂ ਵਰਤਹਿ ਜਾਹਰਾ ॥ए माणस जाणहि

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ਬਿਨੁ ਕਰਮਾ ਕਿਛੂ ਨ ਪਾਈਐ ਜੇ ਬਹੁਤੁ ਲੋਚਾਹੀ ॥बिनु करमा किछू न पाईऐ जे बहुतु लोचाही ॥यदि बहुत कामना भी की जाए, परन्तु भाग्य के बिना कुछ भी पाया नहीं जा सकता। ਆਵੈ ਜਾਇ ਜੰਮੈ ਮਰੈ ਗੁਰ ਸਬਦਿ ਛੁਟਾਹੀ ॥आवै जाइ जमै मरै गुर सबदि छुटाही ॥मनुष्य आवागमन में जन्मता-मरता रहता है लेकिन इसका छुटकारा

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ਭੋਲਤਣਿ ਭੈ ਮਨਿ ਵਸੈ ਹੇਕੈ ਪਾਧਰ ਹੀਡੁ ॥भोलतणि भै मनि वसै हेकै पाधर हीडु ॥भोलापन और प्रभु-भय मन में वास करे तो हृदय में से ही एक (प्रभु-मिलन का) रास्ता है। ਅਤਿ ਡਾਹਪਣਿ ਦੁਖੁ ਘਣੋ ਤੀਨੇ ਥਾਵ ਭਰੀਡੁ ॥੧॥अति डाहपणि दुखु घणो तीने थाव भरीडु ॥१॥अधिक ईष्या-द्वेष करने से बहुत दुख भोगना पड़ता है और

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ਪਉੜੀ ॥पउड़ी ॥पउड़ी॥ ਦੋਵੈ ਤਰਫਾ ਉਪਾਈਓਨੁ ਵਿਚਿ ਸਕਤਿ ਸਿਵ ਵਾਸਾ ॥दोवै तरफा उपाईओनु विचि सकति सिव वासा ॥(लोक-परलोक) दोनों मार्गों को उत्पन्न करके जीव रूपी शिव का शक्ति रूपी माया में निवास कर दिया है। ਸਕਤੀ ਕਿਨੈ ਨ ਪਾਇਓ ਫਿਰਿ ਜਨਮਿ ਬਿਨਾਸਾ ॥सकती किनै न पाइओ फिरि जनमि बिनासा ॥माया रूपी शक्ति द्वारा किसी ने

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ਆਪੇ ਸ੍ਰਿਸਟਿ ਸਭ ਸਾਜੀਅਨੁ ਆਪੇ ਵਰਤੀਜੈ ॥आपे स्रिसटि सभ साजीअनु आपे वरतीजै ॥उसने स्वयं ही समूची सृष्टि का निर्माण किया है और स्वयं ही उसमें कार्यशील है। ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਦਾ ਸਲਾਹੀਐ ਸਚੁ ਕੀਮਤਿ ਕੀਜੈ ॥गुरमुखि सदा सलाहीऐ सचु कीमति कीजै ॥गुरु के सान्निध्य में सदा उसका स्तुतिगान करो, इस प्रकार उस परमसत्य का सही मूल्यांकन किया

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ਆਪਿ ਕਰਾਏ ਕਰੇ ਆਪਿ ਆਪੇ ਹਰਿ ਰਖਾ ॥੩॥आपि कराए करे आपि आपे हरि रखा ॥३॥ईश्वर स्वयं ही सब करता-करवाता है और स्वयं सबका रक्षक है॥ ३॥ ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੩ ॥सलोकु मः ३ ॥श्लोक महला ३॥ ਜਿਨਾ ਗੁਰੁ ਨਹੀ ਭੇਟਿਆ ਭੈ ਕੀ ਨਾਹੀ ਬਿੰਦ ॥जिना गुरु नही भेटिआ भै की नाही बिंद ॥जिन्हें गुरु नहीं मिला,

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ਗੁਣ ਤੇ ਗੁਣ ਮਿਲਿ ਪਾਈਐ ਜੇ ਸਤਿਗੁਰ ਮਾਹਿ ਸਮਾਇ ॥गुण ते गुण मिलि पाईऐ जे सतिगुर माहि समाइ ॥अगर सतगुरु में लीन हुआ जाए तो उस गुणवान् से मिलकर गुण प्राप्त हो जाते हैं। ਮੋੁਲਿ ਅਮੋੁਲੁ ਨ ਪਾਈਐ ਵਣਜਿ ਨ ਲੀਜੈ ਹਾਟਿ ॥मोलि अमोलु न पाईऐ वणजि न लीजै हाटि ॥अमूल्य गुण तो किसी भी

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