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ਗੰਗਾ ਜਮੁਨਾ ਕੇਲ ਕੇਦਾਰਾ ॥गंगा जमुना केल केदारा ॥गंगा, यमुना, वृंदावन, केदारनाथ, ਕਾਸੀ ਕਾਂਤੀ ਪੁਰੀ ਦੁਆਰਾ ॥कासी कांती पुरी दुआरा ॥काशी, मथुरा, द्वारिका पुरी, ਗੰਗਾ ਸਾਗਰੁ ਬੇਣੀ ਸੰਗਮੁ ਅਠਸਠਿ ਅੰਕਿ ਸਮਾਈ ਹੇ ॥੯॥गंगा सागरु बेणी संगमु अठसठि अंकि समाई हे ॥९॥गंगासागर और त्रिवेणी संगम इत्यादि अड़सठ तीर्थ ईश्वर के स्वरूप में ही लीन बने हुए

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ਆਪੇ ਕਿਸ ਹੀ ਕਸਿ ਬਖਸੇ ਆਪੇ ਦੇ ਲੈ ਭਾਈ ਹੇ ॥੮॥आपे किस ही कसि बखसे आपे दे लै भाई हे ॥८॥वह स्वयं ही किसी के कर्म पर क्षमा-दान करता है और किसी को दण्ड देता है ॥८॥ ਆਪੇ ਧਨਖੁ ਆਪੇ ਸਰਬਾਣਾ ॥आपे धनखु आपे सरबाणा ॥वह स्वयं ही धनुष एवं बाण चलाने वाला है, ਆਪੇ

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ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ॥मारू महला ५ ॥मारू महला ५॥ ਜੀਵਨਾ ਸਫਲ ਜੀਵਨ ਸੁਨਿ ਹਰਿ ਜਪਿ ਜਪਿ ਸਦ ਜੀਵਨਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥जीवना सफल जीवन सुनि हरि जपि जपि सद जीवना ॥१॥ रहाउ ॥उसी का जीवन सफल है, जो ईश्वर की वंदना एवं महिमागान सुन जीवन बिताता है॥ १॥ रहाउ॥ ਪੀਵਨਾ ਜਿਤੁ ਮਨੁ ਆਘਾਵੈ ਨਾਮੁ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਰਸੁ

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ਚਰਣ ਤਲੈ ਉਗਾਹਿ ਬੈਸਿਓ ਸ੍ਰਮੁ ਨ ਰਹਿਓ ਸਰੀਰਿ ॥चरण तलै उगाहि बैसिओ स्रमु न रहिओ सरीरि ॥जो व्यक्ति लकड़ी से बनी हुई नाव को पैरों तले दबा कर उसमें बैठ गया है, उसके शरीर की थकावट दूर हो गई है। ਮਹਾ ਸਾਗਰੁ ਨਹ ਵਿਆਪੈ ਖਿਨਹਿ ਉਤਰਿਓ ਤੀਰਿ ॥੨॥महा सागरु नह विआपै खिनहि उतरिओ तीरि ॥२॥महासागर

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ਮਾਰੂ ਮਹਲਾ ੫ ਘਰੁ ੩ ਅਸਟਪਦੀਆमारू महला ५ घरु ३ असटपदीआमारू महला ५ घरु ३ असटपदीआ ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ੴ सतिगुर प्रसादि॥ ਲਖ ਚਉਰਾਸੀਹ ਭ੍ਰਮਤੇ ਭ੍ਰਮਤੇ ਦੁਲਭ ਜਨਮੁ ਅਬ ਪਾਇਓ ॥੧॥लख चउरासीह भ्रमते भ्रमते दुलभ जनमु अब पाइओ ॥१॥चौरासी लाख योनियों में भटकते-भटकते अब यह दुर्लभ मानव जन्म प्राप्त हुआ है॥ १॥

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ਕਲਰ ਖੇਤੀ ਤਰਵਰ ਕੰਠੇ ਬਾਗਾ ਪਹਿਰਹਿ ਕਜਲੁ ਝਰੈ ॥कलर खेती तरवर कंठे बागा पहिरहि कजलु झरै ॥नाम के बिना मनुष्य का जीवन यू व्यर्थ है, जैसे बंजर भूमि में बोई फसल है, दरिया के तट पर पेड़ हैं और वहाँ सफेद वस्त्र धारण किए हुए हैं जहाँ कालिमा उड़-उड़कर वस्त्रों पर पड़ती हो। ਏਹੁ ਸੰਸਾਰੁ

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ਕਿਤੀ ਚਖਉ ਸਾਡੜੇ ਕਿਤੀ ਵੇਸ ਕਰੇਉ ॥किती चखउ साडड़े किती वेस करेउ ॥निस्संकोच कितने ही पदाथों के स्वाद चखती रहूँ, कितने ही सुन्दर पहनावे धारण करती रहूँ, ਪਿਰ ਬਿਨੁ ਜੋਬਨੁ ਬਾਦਿ ਗਇਅਮੁ ਵਾਢੀ ਝੂਰੇਦੀ ਝੂਰੇਉ ॥੫॥पिर बिनु जोबनु बादि गइअमु वाढी झूरेदी झूरेउ ॥५॥परन्तु प्रभु के बिना यौवन व्यर्थ है, उससे बिछुड़ी चिंताग्रस्त रहती हूँ॥

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ਅੰਤਰਿ ਅਗਨਿ ਨ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਬੂਝੈ ਬਾਹਰਿ ਪੂਅਰ ਤਾਪੈ ॥अंतरि अगनि न गुर बिनु बूझै बाहरि पूअर तापै ॥गुरु के बिना उसके अन्तर्मन में से तृष्णाग्नि नहीं बुझती किन्तु बाहर वह धूनेियों तापता है। ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਬਿਨੁ ਭਗਤਿ ਨ ਹੋਵੀ ਕਿਉ ਕਰਿ ਚੀਨਸਿ ਆਪੈ ॥गुर सेवा बिनु भगति न होवी किउ करि चीनसि आपै ॥गुरु

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ਗੁਰ ਸੇਵਾ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਹੈ ਜਿਸ ਨੋ ਹੁਕਮੁ ਮਨਾਏ ॥੭॥गुर सेवा सदा सुखु है जिस नो हुकमु मनाए ॥७॥गुरु की सेवा से सदा सुख प्राप्त होता है, पर सेवा भी वही करता है, जिससे हुक्म मनवाता है॥ ७॥ ਸੁਇਨਾ ਰੁਪਾ ਸਭ ਧਾਤੁ ਹੈ ਮਾਟੀ ਰਲਿ ਜਾਈ ॥सुइना रुपा सभ धातु है माटी रलि जाई ॥सोना-चांदी

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ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਸਾਬਾਸਿ ਹੈ ਕਾਟੈ ਮਨ ਪੀਰਾ ॥੨॥गुर पूरे साबासि है काटै मन पीरा ॥२॥पूर्ण गुरु को मेरी शाबाश है, जिसने मन की पीड़ा दूर कर दी है॥ २॥ ਲਾਲਾ ਗੋਲਾ ਧਣੀ ਕੋ ਕਿਆ ਕਹਉ ਵਡਿਆਈਐ ॥लाला गोला धणी को किआ कहउ वडिआईऐ ॥जो मालिक का गुलाम एवं दास है, उसकी भला क्या प्रशंसा करूं

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