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ਪੂਰੀ ਭਈ ਸਿਮਰਿ ਸਿਮਰਿ ਬਿਧਾਤਾ ॥੩॥पूरी भई सिमरि सिमरि बिधाता ॥३॥उस विधाता का सिमरन कर कर के मेरी साधना पूरी हो गई है ॥३॥ ਸਾਧਸੰਗਿ ਨਾਨਕਿ ਰੰਗੁ ਮਾਣਿਆ ॥साधसंगि नानकि रंगु माणिआ ॥नानक ने साधु की संगति में आनंद प्राप्त किया है। ਘਰਿ ਆਇਆ ਪੂਰੈ ਗੁਰਿ ਆਣਿਆ ॥੪॥੧੨॥੧੭॥घरि आइआ पूरै गुरि आणिआ ॥४॥१२॥१७॥पूर्ण गुरु की

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ਚਰਨ ਕਮਲ ਸਿਉ ਲਾਈਐ ਚੀਤਾ ॥੧॥चरन कमल सिउ लाईऐ चीता ॥१॥जब भगवान के चरणों में चित्त लगाया जाता है ॥१॥ ਹਉ ਬਲਿਹਾਰੀ ਜੋ ਪ੍ਰਭੂ ਧਿਆਵਤ ॥हउ बलिहारी जो प्रभू धिआवत ॥जो प्रभु का ध्यान करता है, मैं उस पर बलिहारी जाता हूँ। ਜਲਨਿ ਬੁਝੈ ਹਰਿ ਹਰਿ ਗੁਨ ਗਾਵਤ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥जलनि बुझै हरि हरि गुन

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ਕਾਮਿ ਕ੍ਰੋਧਿ ਲੋਭਿ ਮੋਹਿ ਮਨੁ ਲੀਨਾ ॥कामि क्रोधि लोभि मोहि मनु लीना ॥मेरा मन काम, क्रोध, लोभ, मोह में लीन रहता था, ਬੰਧਨ ਕਾਟਿ ਮੁਕਤਿ ਗੁਰਿ ਕੀਨਾ ॥੨॥बंधन काटि मुकति गुरि कीना ॥२॥मगर गुरु ने मेरे सारे बन्धन काटकर मुझे मुक्त कर दिया है॥ २॥ ਦੁਖ ਸੁਖ ਕਰਤ ਜਨਮਿ ਫੁਨਿ ਮੂਆ ॥दुख सुख करत जनमि

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ਨਾਨਕ ਸੇ ਦਰਿ ਸੋਭਾਵੰਤੇ ਜੋ ਪ੍ਰਭਿ ਅਪੁਨੈ ਕੀਓ ॥੧॥नानक से दरि सोभावंते जो प्रभि अपुनै कीओ ॥१॥हे नानक ! प्रभु के द्वार पर वही शोभा के पात्र बनते हैं, जिन्हें उसने अपना बना लिया है॥ १॥ ਹਰਿਚੰਦਉਰੀ ਚਿਤ ਭ੍ਰਮੁ ਸਖੀਏ ਮ੍ਰਿਗ ਤ੍ਰਿਸਨਾ ਦ੍ਰੁਮ ਛਾਇਆ ॥हरिचंदउरी चित भ्रमु सखीए म्रिग त्रिसना द्रुम छाइआ ॥हे सखी !

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ਅਗਨਤ ਗੁਣ ਠਾਕੁਰ ਪ੍ਰਭ ਤੇਰੇ ॥अगनत गुण ठाकुर प्रभ तेरे ॥तेरे गुण असंख्य हैं। ਮੋਹਿ ਅਨਾਥ ਤੁਮਰੀ ਸਰਣਾਈ ॥मोहि अनाथ तुमरी सरणाई ॥मुझ अनाथ ने तेरी शरण ली है। ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਹਰਿ ਚਰਨ ਧਿਆਈ ॥੧॥करि किरपा हरि चरन धिआई ॥१॥हे श्री हरि ! ऐसी कृपा करो, ताकि मैं तेरे चरणों का ध्यान करता रहूँ॥ १॥

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ਹਰਿ ਭਰਿਪੁਰੇ ਰਹਿਆ ॥हरि भरिपुरे रहिआ ॥ईश्वर हर जगह भरपूर है। ਜਲਿ ਥਲੇ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ॥जलि थले राम नामु ॥राम का नाम जल एवं पृथ्वी में विद्यमान है। ਨਿਤ ਗਾਈਐ ਹਰਿ ਦੂਖ ਬਿਸਾਰਨੋ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥नित गाईऐ हरि दूख बिसारनो ॥१॥ रहाउ ॥नित्य दुखों का नाश करने वाले हरि का यश गाना चाहिए॥ १ ॥

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ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵੀ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਇਆ ॥सतिगुरु सेवी सबदि सुहाइआ ॥जो सतिगुरु की सेवा करता है, गुरु की वाणी से शोभा पा रहा है। ਜਿਨਿ ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਇਆ ॥जिनि हरि का नामु मंनि वसाइआ ॥जिस व्यक्ति ने भगवान का नाम अपने मन में बसा लिया है, ਹਰਿ ਨਿਰਮਲੁ ਹਉਮੈ ਮੈਲੁ ਗਵਾਏ ਦਰਿ ਸਚੈ ਸੋਭਾ ਪਾਵਣਿਆ

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ਅਨਦਿਨੁ ਸਦਾ ਰਹੈ ਭੈ ਅੰਦਰਿ ਭੈ ਮਾਰਿ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਵਣਿਆ ॥੫॥अनदिनु सदा रहै भै अंदरि भै मारि भरमु चुकावणिआ ॥५॥दिन-रात वह सदा ही प्रभु के भय में रहता है और यम के भय को मिटा कर वह अपने संशय को निवृत्त कर देता है॥५ ॥ ਭਰਮੁ ਚੁਕਾਇਆ ਸਦਾ ਸੁਖੁ ਪਾਇਆ ॥भरमु चुकाइआ सदा सुखु पाइआ ॥जो

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ਤੂੰ ਆਪੇ ਹੀ ਘੜਿ ਭੰਨਿ ਸਵਾਰਹਿ ਨਾਨਕ ਨਾਮਿ ਸੁਹਾਵਣਿਆ ॥੮॥੫॥੬॥तूं आपे ही घड़ि भंनि सवारहि नानक नामि सुहावणिआ ॥८॥५॥६॥हे भगवान ! तू स्वयं ही सृष्टि का निर्माण करके एवं विनाश करके संवारता है। हे नानक ! भगवान जीवों को अपने नाम में लगाकर उन्हें सुन्दर बना देता है ॥८॥५॥६॥ ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥माझ महला ३

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ਅਨਦਿਨੁ ਜਲਦੀ ਫਿਰੈ ਦਿਨੁ ਰਾਤੀ ਬਿਨੁ ਪਿਰ ਬਹੁ ਦੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੨॥अनदिनु जलदी फिरै दिनु राती बिनु पिर बहु दुखु पावणिआ ॥२॥वह दिन-रात तृष्णाग्नि में जलती रहती है और पति-प्रभु के बिना बहुत दुखी रहती है॥२ ॥ ਦੇਹੀ ਜਾਤਿ ਨ ਆਗੈ ਜਾਏ ॥देही जाति न आगै जाए ॥मनुष्य का शरीर एवं जाति परलोक में नहीं जाते।

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