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ਆਪੁ ਬੀਚਾਰਿ ਮਾਰਿ ਮਨੁ ਦੇਖਿਆ ਤੁਮ ਸਾ ਮੀਤੁ ਨ ਅਵਰੁ ਕੋਈ ॥आपु बीचारि मारि मनु देखिआ तुम सा मीतु न अवरु कोई ॥मैंने स्वयं विचार करके एवं अपने मन को नियन्त्रण में करके यह भलीभांति देखा है कि तेरे जैसा मित्र अन्य कोई नहीं। ਜਿਉ ਤੂੰ ਰਾਖਹਿ ਤਿਵ ਹੀ ਰਹਣਾ ਦੁਖੁ ਸੁਖੁ ਦੇਵਹਿ ਕਰਹਿ ਸੋਈ

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ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥आसा महला १ ॥आसा महला १ ॥ ਕਾਇਆ ਬ੍ਰਹਮਾ ਮਨੁ ਹੈ ਧੋਤੀ ॥काइआ ब्रहमा मनु है धोती ॥यह मानव शरीर ही पूजनीय ब्राह्मण है और मन इस ब्राह्मण की धोती है,” ਗਿਆਨੁ ਜਨੇਊ ਧਿਆਨੁ ਕੁਸਪਾਤੀ ॥गिआनु जनेऊ धिआनु कुसपाती ॥ब्रह्म-ज्ञान इसका जनेऊ है और प्रभु का ध्यान इसकी कुशा है। ਹਰਿ ਨਾਮਾ

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ਐਸਾ ਗੁਰਮਤਿ ਰਮਤੁ ਸਰੀਰਾ ॥ ਹਰਿ ਭਜੁ ਮੇਰੇ ਮਨ ਗਹਿਰ ਗੰਭੀਰਾ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ऐसा गुरमति रमतु सरीरा ॥ हरि भजु मेरे मन गहिर ग्मभीरा ॥१॥ रहाउ ॥हे मेरे मन ! सतिगुरु के उपदेश से ऐसे हरि का भजन कर,”जो समस्त शरीरों में समाया हुआ और बहुत ही गहरा एवं गंभीर है॥ १॥ रहाउ॥ ਅਨਤ ਤਰੰਗ

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ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਹਰਿ ਰਸੁ ਪਾਇਆ ਨਾਮੁ ਪਦਾਰਥੁ ਨਉ ਨਿਧਿ ਪਾਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥गुर परसादी हरि रसु पाइआ नामु पदारथु नउ निधि पाई ॥१॥ रहाउ ॥गुरु की कृपा से मैंने हरि-रस प्राप्त किया है और नवनिधियाँ देने वाले नाम-पदार्थ को पा लिया है॥ १॥ रहाउ॥ ਕਰਮ ਧਰਮ ਸਚੁ ਸਾਚਾ ਨਾਉ ॥करम धरम सचु साचा नाउ ॥जिन

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ਸਤਿਗੁਰੁ ਸੇਵਿ ਪਾਏ ਨਿਜ ਥਾਉ ॥੧॥सतिगुरु सेवि पाए निज थाउ ॥१॥सतिगुरु की सेवा करने से मनुष्य आत्मस्वरूप प्राप्त कर लेता है॥ १॥ ਮਨ ਚੂਰੇ ਖਟੁ ਦਰਸਨ ਜਾਣੁ ॥मन चूरे खटु दरसन जाणु ॥अपने मन को जीतना ही षड्दर्शन का ज्ञान है। ਸਰਬ ਜੋਤਿ ਪੂਰਨ ਭਗਵਾਨੁ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥सरब जोति पूरन भगवानु ॥१॥ रहाउ ॥भगवान की

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ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੧ ॥आसा महला १ ॥आसा महला १ ॥ ਕਰਮ ਕਰਤੂਤਿ ਬੇਲਿ ਬਿਸਥਾਰੀ ਰਾਮ ਨਾਮੁ ਫਲੁ ਹੂਆ ॥करम करतूति बेलि बिसथारी राम नामु फलु हूआ ॥शुभ कर्मों एवं नेक आचरण की लता फैली हुई है और उस लता को राम के नाम का फल लगा हुआ है। ਤਿਸੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖ ਅਨਾਹਦੁ ਵਾਜੈ ਸਬਦੁ

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ਜੇ ਸਉ ਵਰ੍ਹਿਆ ਜੀਵਣ ਖਾਣੁ ॥जे सउ वर्हिआ जीवण खाणु ॥यदि मनुष्य सैंकड़ों वर्ष जीवन रहने तक भी खाता रहे तो ਖਸਮ ਪਛਾਣੈ ਸੋ ਦਿਨੁ ਪਰਵਾਣੁ ॥੨॥खसम पछाणै सो दिनु परवाणु ॥२॥केवल वही दिन प्रभु के दरबार में स्वीकृत होगा, जब वह प्रभु को पहचानता है॥ २॥ ਦਰਸਨਿ ਦੇਖਿਐ ਦਇਆ ਨ ਹੋਇ ॥दरसनि देखिऐ दइआ

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ਕੀਮਤਿ ਪਾਇ ਨ ਕਹਿਆ ਜਾਇ ॥ कीमति पाइ न कहिआ जाइ ॥ वास्तव में उस सर्गुण स्वरूप परमात्मा की न तो कोई कीमत आंक सकता है और न ही उसका कोई अंत कह सकता है, क्योंकि वह अनन्त व असीम है। O’ God, Your creation cannot be estimated or fully described. ਕਹਣੈ ਵਾਲੇ ਤੇਰੇ ਰਹੇ

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ਆਸਾ ਮਹਲਾ ੪ ॥आसा महला ४ ॥आसा महला ४ ॥ ਸੋ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹਰਿ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਹਰਿ ਅਗਮਾ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ॥सो पुरखु निरंजनु हरि पुरखु निरंजनु हरि अगमा अगम अपारा ॥वह अकालपुरुष सृष्टि के समस्त जीवों में व्यापक है, फिर भी मायातीत है, अगम्य है तथा अनन्त है। ਸਭਿ ਧਿਆਵਹਿ ਸਭਿ ਧਿਆਵਹਿ ਤੁਧੁ ਜੀ ਹਰਿ

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ੴ ਸਤਿਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिनामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥१ ऑ- निरंकार वही एक है। सति नामु – उसका नाम सत्य है। करता – वह सृष्टि व उसके जीवों की रचने वाला है। पुरखु – वह यह सब कुछ करने में परिपूर्ण

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