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ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਜਨ ਕਉ ਭੋਗ ਜੋਗ ॥हरि का नामु जन कउ भोग जोग ॥भगवान का नाम ही भक्त के लिए योग (साधन) एवं गृहस्थी का माया-भोग है। ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਜਪਤ ਕਛੁ ਨਾਹਿ ਬਿਓਗੁ ॥हरि नामु जपत कछु नाहि बिओगु ॥भगवान के नाम का जाप करने से उसे कोई दुःख-क्लेश नहीं होता। ਜਨੁ ਰਾਤਾ ਹਰਿ

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ਅਸਟਪਦੀ ॥असटपदी ॥अष्टपदी। ਜਹ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸੁਤ ਮੀਤ ਨ ਭਾਈ ॥जह मात पिता सुत मीत न भाई ॥जहाँ माता, पिता, पुत्र, मित्र एवं भाई, कोई (सहायक) नहीं, ਮਨ ਊਹਾ ਨਾਮੁ ਤੇਰੈ ਸੰਗਿ ਸਹਾਈ ॥मन ऊहा नामु तेरै संगि सहाई ॥वहाँ हे मेरे मन ! ईश्वर का नाम तेरे साथ सहायक होगा। ਜਹ ਮਹਾ ਭਇਆਨ ਦੂਤ

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ਨਾਨਕ ਤਾ ਕੈ ਲਾਗਉ ਪਾਏ ॥੩॥नानक ता कै लागउ पाए ॥३॥हे नानक ! मैं उन सिमरन करने वाले महापुरुषों के चरण-स्पर्श करता हूँ॥ ३॥ ਪ੍ਰਭ ਕਾ ਸਿਮਰਨੁ ਸਭ ਤੇ ਊਚਾ ॥प्रभ का सिमरनु सभ ते ऊचा ॥प्रभु का सिमरन सबसे ऊँचा है। ਪ੍ਰਭ ਕੈ ਸਿਮਰਨਿ ਉਧਰੇ ਮੂਚਾ ॥प्रभ कै सिमरनि उधरे मूचा ॥प्रभु का सिमरन

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ਨਾਨਕ ਦੀਜੈ ਨਾਮ ਦਾਨੁ ਰਾਖਉ ਹੀਐ ਪਰੋਇ ॥੫੫॥नानक दीजै नाम दानु राखउ हीऐ परोइ ॥५५॥मुझे अपने नाम का दान प्रदान कीजिए चूंकि जो मैं इसे अपने हृदय में पिरोकर रखूं ॥५५॥ ਸਲੋਕੁ ॥सलोकु ॥श्लोक॥ ਗੁਰਦੇਵ ਮਾਤਾ ਗੁਰਦੇਵ ਪਿਤਾ ਗੁਰਦੇਵ ਸੁਆਮੀ ਪਰਮੇਸੁਰਾ ॥गुरदेव माता गुरदेव पिता गुरदेव सुआमी परमेसुरा ॥गुरु ही माता है, गुरु ही पिता

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ਓਰੈ ਕਛੂ ਨ ਕਿਨਹੂ ਕੀਆ ॥ओरै कछू न किनहू कीआ ॥यहाँ (इहलोक में) किसी ने कुछ भी स्वयं सम्पूर्ण नहीं किया। ਨਾਨਕ ਸਭੁ ਕਛੁ ਪ੍ਰਭ ਤੇ ਹੂਆ ॥੫੧॥नानक सभु कछु प्रभ ते हूआ ॥५१॥हे नानक ! प्रभु ने ही यह सृष्टि रचना की हुई है॥ ५१॥ ਸਲੋਕੁ ॥सलोकु ॥श्लोक॥ ਲੇਖੈ ਕਤਹਿ ਨ ਛੂਟੀਐ ਖਿਨੁ ਖਿਨੁ

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ਸਲੋਕੁ ॥सलोकु ॥श्लोक॥ ਹਉ ਹਉ ਕਰਤ ਬਿਹਾਨੀਆ ਸਾਕਤ ਮੁਗਧ ਅਜਾਨ ॥हउ हउ करत बिहानीआ साकत मुगध अजान ॥शाक्त, मूर्ख एवं नासमझ इन्सान अहंकार करता हुआ अपनी आयु बिता देता है। ੜੜਕਿ ਮੁਏ ਜਿਉ ਤ੍ਰਿਖਾਵੰਤ ਨਾਨਕ ਕਿਰਤਿ ਕਮਾਨ ॥੧॥ड़ड़कि मुए जिउ त्रिखावंत नानक किरति कमान ॥१॥हे नानक ! दुःख में वह प्यासे पुरुष की भाँति मर

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ਸਲੋਕੁ ॥सलोक ॥श्लोक ॥ ਮਤਿ ਪੂਰੀ ਪਰਧਾਨ ਤੇ ਗੁਰ ਪੂਰੇ ਮਨ ਮੰਤ ॥मति पूरी परधान ते गुर पूरे मन मंत ॥जिनके मन में पूर्ण गुरु का मंत्र विद्यमान हो जाता है, उनकी बुद्धि पूर्ण हो जाती है और वे विख्यात हो जाते हैं। ਜਿਹ ਜਾਨਿਓ ਪ੍ਰਭੁ ਆਪੁਨਾ ਨਾਨਕ ਤੇ ਭਗਵੰਤ ॥੧॥जिह जानिओ प्रभु आपुना नानक

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ਨਿਧਿ ਨਿਧਾਨ ਹਰਿ ਅੰਮ੍ਰਿਤ ਪੂਰੇ ॥निधि निधान हरि अम्रित पूरे ॥हे नानक ! जिनके अन्तर्मन सर्वगुणों के भण्डार हरि-नाम के अमृत से भरे रहते हैं, ਤਹ ਬਾਜੇ ਨਾਨਕ ਅਨਹਦ ਤੂਰੇ ॥੩੬॥तह बाजे नानक अनहद तूरे ॥३६॥उनके भीतर एक ऐसा आनन्द कायम रहता है, जिस तरह लगातार अनहद ध्वनि के सर्व प्रकार के संगीत मिले-जुले स्वर

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ਤ੍ਰਾਸ ਮਿਟੈ ਜਮ ਪੰਥ ਕੀ ਜਾਸੁ ਬਸੈ ਮਨਿ ਨਾਉ ॥त्रास मिटै जम पंथ की जासु बसै मनि नाउ ॥जिसके हृदय में नाम निवास करता है, उसको मृत्यु का मार्ग एवं भय नहीं सताता। ਗਤਿ ਪਾਵਹਿ ਮਤਿ ਹੋਇ ਪ੍ਰਗਾਸ ਮਹਲੀ ਪਾਵਹਿ ਠਾਉ ॥गति पावहि मति होइ प्रगास महली पावहि ठाउ ॥वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है

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ਪਉੜੀ ॥पउड़ी ॥पउड़ी॥ ਠਠਾ ਮਨੂਆ ਠਾਹਹਿ ਨਾਹੀ ॥ठठा मनूआ ठाहहि नाही ॥ठ – वह किसी के भी मन को दुःख नहीं पहुँचाते ਜੋ ਸਗਲ ਤਿਆਗਿ ਏਕਹਿ ਲਪਟਾਹੀ ॥जो सगल तिआगि एकहि लपटाही ॥जो सब कुछ त्याग कर एक ईश्वर से जुड़े हुए हैं। ਠਹਕਿ ਠਹਕਿ ਮਾਇਆ ਸੰਗਿ ਮੂਏ ॥ठहकि ठहकि माइआ संगि मूए ॥जो लोग

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