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ਚਰਨ ਸੇਵ ਸੰਤ ਸਾਧ ਕੇ ਸਗਲ ਮਨੋਰਥ ਪੂਰੇ ॥੩॥चरन सेव संत साध के सगल मनोरथ पूरे ॥३॥संतों व साधु जनों के चरणों की सेवा करने से मेरी समस्त अभिलाषाएँ पूर्ण हो गई हैं॥ ३॥                                                           ਘਟਿ ਘਟਿ ਏਕੁ ਵਰਤਦਾ ਜਲਿ ਥਲਿ ਮਹੀਅਲਿ ਪੂਰੇ ॥੪॥ घटि घटि एकु वरतदा जलि थलि महीअलि पूरे ॥४॥कण-कण में एक ईश्वर ही

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ਅੰਧ ਕੂਪ ਤੇ ਕੰਢੈ ਚਾੜੇ ॥अंध कूप ते कंढै चाड़े ॥हे ईश्वर ! तूने भक्तों को संसार रूपी अंधकूप में से निकाल कर पार कर दिया है। ਕਰਿ ਕਿਰਪਾ ਦਾਸ ਨਦਰਿ ਨਿਹਾਲੇ ॥करि किरपा दास नदरि निहाले ॥और तूने अपनी कृपा-दृष्टि करके अपने भक्तों को कृतार्थ कर दिया है ਗੁਣ ਗਾਵਹਿ ਪੂਰਨ ਅਬਿਨਾਸੀ ਕਹਿ ਸੁਣਿ

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ਤੂੰ ਵਡਾ ਤੂੰ ਊਚੋ ਊਚਾ ॥तूं वडा तूं ऊचो ऊचा ॥हे प्रभु ! तुम महान हो, तुम सर्वोच्च एवं सर्वोपरि हो। ਤੂੰ ਬੇਅੰਤੁ ਅਤਿ ਮੂਚੋ ਮੂਚਾ ॥तूं बेअंतु अति मूचो मूचा ॥हे दाता ! तुम अनन्त हो और सर्वश्रेष्ठ हो। ਹਉ ਕੁਰਬਾਣੀ ਤੇਰੈ ਵੰਞਾ ਨਾਨਕ ਦਾਸ ਦਸਾਵਣਿਆ ॥੮॥੧॥੩੫॥हउ कुरबाणी तेरै वंञा नानक दास दसावणिआ ॥८॥१॥३५॥हे

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ਤਿਸੁ ਰੂਪੁ ਨ ਰੇਖਿਆ ਘਟਿ ਘਟਿ ਦੇਖਿਆ ਗੁਰਮੁਖਿ ਅਲਖੁ ਲਖਾਵਣਿਆ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥तिसु रूपु न रेखिआ घटि घटि देखिआ गुरमुखि अलखु लखावणिआ ॥१॥ रहाउ ॥उस प्रभु का न ही कोई रूप है अथवा न ही कोई रेखा है, उसे गुरमुखों ने घट-घट में देखा है। गुरमुख दूसरों को भी प्रभु के स्वरूप के दर्शन करवाते

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ਅਹਿਨਿਸਿ ਪ੍ਰੀਤਿ ਸਬਦਿ ਸਾਚੈ ਹਰਿ ਸਰਿ ਵਾਸਾ ਪਾਵਣਿਆ ॥੫॥अहिनिसि प्रीति सबदि साचै हरि सरि वासा पावणिआ ॥५॥वह दिन-रात सत्य नाम के प्रेम में अनुरक्त रहते हैं और भगवान के सागर में बसेरा कर लेते हैं।॥५॥ ਮਨਮੁਖੁ ਸਦਾ ਬਗੁ ਮੈਲਾ ਹਉਮੈ ਮਲੁ ਲਾਈ ॥मनमुखु सदा बगु मैला हउमै मलु लाई ॥मनमुख पाखंडी बगुले की तरह हमेशा

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ਮਾਝ ਮਹਲਾ ੩ ॥माझ महला ३ ॥माझ महला ३ ॥ ਮਨਮੁਖ ਪੜਹਿ ਪੰਡਿਤ ਕਹਾਵਹਿ ॥मनमुख पड़हि पंडित कहावहि ॥स्वेच्छाचारी जीव द्वैतभाव में ग्रंथ पढ़ते रहते हैं और स्वयं को विद्वान कहलवाते हैं। ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਮਹਾ ਦੁਖੁ ਪਾਵਹਿ ॥दूजै भाइ महा दुखु पावहि ॥वे माया के मोह में फँसकर बहुत दुखी होते हैं। ਬਿਖਿਆ ਮਾਤੇ ਕਿਛੁ

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ਗੁਰ ਕੈ ਸਬਦਿ ਇਹੁ ਗੁਫਾ ਵੀਚਾਰੇ ॥गुर कै सबदि इहु गुफा वीचारे ॥जो व्यक्ति गुरु के शब्द द्वारा इस गुफा का चिन्तन करता है, ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨੁ ਅੰਤਰਿ ਵਸੈ ਮੁਰਾਰੇ ॥नामु निरंजनु अंतरि वसै मुरारे ॥उसके हृदय में मुरारि प्रभु का निरंजन नाम बस जाता है। ਹਰਿ ਗੁਣ ਗਾਵੈ ਸਬਦਿ ਸੁਹਾਏ ਮਿਲਿ ਪ੍ਰੀਤਮ ਸੁਖੁ ਪਾਵਣਿਆ ॥੪॥हरि

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ਆਪੇ ਊਚਾ ਊਚੋ ਹੋਈ ॥आपे ऊचा ऊचो होई ॥हे भगवान ! तू स्वयं ही बड़ों से भी बड़ा अर्थात् सर्वश्रेष्ठ है। ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਵਿਖਾਲੇ ਸੁ ਵੇਖੈ ਕੋਈ ॥जिसु आपि विखाले सु वेखै कोई ॥जिस व्यक्ति को तू स्वयं अपना रूप दिखाता है, वहीं तेरे दर्शन कर सकता है। ਨਾਨਕ ਨਾਮੁ ਵਸੈ ਘਟ ਅੰਤਰਿ ਆਪੇ ਵੇਖਿ

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ਗੁਰਮੁਖਿ ਜੀਵੈ ਮਰੈ ਪਰਵਾਣੁ ॥गुरमुखि जीवै मरै परवाणु ॥गुरमुख का जीना एवं मरना प्रमाणिक है।  ਆਰਜਾ ਨ ਛੀਜੈ ਸਬਦੁ ਪਛਾਣੁ ॥आरजा न छीजै सबदु पछाणु ॥उसका जीवन व्यर्थ नहीं जाता, क्योंकि वह परमात्मा को पहचानता है। ਗੁਰਮੁਖਿ ਮਰੈ ਨ ਕਾਲੁ ਨ ਖਾਏ ਗੁਰਮੁਖਿ ਸਚਿ ਸਮਾਵਣਿਆ ॥੨॥गुरमुखि मरै न कालु न खाए गुरमुखि सचि समावणिआ ॥२॥गुरमुख

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ਇਕਿ ਕੂੜਿ ਲਾਗੇ ਕੂੜੇ ਫਲ ਪਾਏ ॥इकि कूड़ि लागे कूड़े फल पाए ॥कई व्यक्ति मिथ्या माया के मोह में फँसे हुए हैं। वे मिथ्या माया रूपी फल ही प्राप्त करते हैं। ਦੂਜੈ ਭਾਇ ਬਿਰਥਾ ਜਨਮੁ ਗਵਾਏ ॥दूजै भाइ बिरथा जनमु गवाए ॥द्वैत-भाव में फँसकर वह अपना जीवन व्यर्थ ही गंवा लेते हैं। ਆਪਿ ਡੁਬੇ ਸਗਲੇ

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