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ਲੈ ਫਾਹੇ ਉਠਿ ਧਾਵਤੇ ਸਿ ਜਾਨਿ ਮਾਰੇ ਭਗਵੰਤ ॥੧੦॥लै फाहे उठि धावते सि जानि मारे भगवंत ॥१०॥वे चाकू-पिस्तौल इत्यादि सामान लेकर भागते फिरते हैं परन्तु सच मानो ऐसे लोगों को ईश्वर ने ही मारा हुआ है।॥ १०॥ ਕਬੀਰ ਚੰਦਨ ਕਾ ਬਿਰਵਾ ਭਲਾ ਬੇੜ੍ਹ੍ਹਿਓ ਢਾਕ ਪਲਾਸ ॥कबीर चंदन का बिरवा भला बेड़्हिओ ढाक पलास ॥“[कबीर जी

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ਸਾਗਰ ਮੇਰ ਉਦਿਆਨ ਬਨ ਨਵ ਖੰਡ ਬਸੁਧਾ ਭਰਮ ॥सागर मेर उदिआन बन नव खंड बसुधा भरम ॥सागर, पर्वत, उद्यान, वन, नवखण्ड एवं धरती का भ्रमण कोई महत्व नहीं रखता। ਮੂਸਨ ਪ੍ਰੇਮ ਪਿਰੰਮ ਕੈ ਗਨਉ ਏਕ ਕਰਿ ਕਰਮ ॥੩॥मूसन प्रेम पिरम कै गनउ एक करि करम ॥३॥हे मूसन ! प्रियतम से प्रेम ही उत्तम कर्म माना

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ਆਸਾ ਇਤੀ ਆਸ ਕਿ ਆਸ ਪੁਰਾਈਐ ॥आसा इती आस कि आस पुराईऐ ॥हे प्रभु ! मिलन की आशा इतनी ज्यादा है कि मेरी आशा को पूरी कर दो। ਸਤਿਗੁਰ ਭਏ ਦਇਆਲ ਤ ਪੂਰਾ ਪਾਈਐ ॥सतिगुर भए दइआल त पूरा पाईऐ ॥जब सतगुरु दया करता है तो आशा पूरी हो जाती है। ਮੈ ਤਨਿ ਅਵਗਣ ਬਹੁਤੁ

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ਪ੍ਰੀਤਮ ਭਗਵਾਨ ਅਚੁਤ ॥प्रीतम भगवान अचुत ॥गुरु नानक फुरमाते हैं- जान से प्यारा भगवान सदैव अटल है, ਨਾਨਕ ਸੰਸਾਰ ਸਾਗਰ ਤਾਰਣਹ ॥੧੪॥नानक संसार सागर तारणह ॥१४॥एक वही संसार-सागर से पार उतारने वाला है॥ १४॥ ਮਰਣੰ ਬਿਸਰਣੰ ਗੋਬਿੰਦਹ ॥मरणं बिसरणं गोबिंदह ॥परमात्मा को भुलाना मरने के बराबर है, ਜੀਵਣੰ ਹਰਿ ਨਾਮ ਧੵਾਵਣਹ ॥जीवणं हरि नाम ध्यावणह

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ਬ੍ਰਹਮਣਹ ਸੰਗਿ ਉਧਰਣੰ ਬ੍ਰਹਮ ਕਰਮ ਜਿ ਪੂਰਣਹ ॥ब्रहमणह संगि उधरणं ब्रहम करम जि पूरणह ॥उसी ब्राह्मण की संगत में उद्धार हो सकता है, जो ब्रह्म कर्म में पूर्ण हो। ਆਤਮ ਰਤੰ ਸੰਸਾਰ ਗਹੰ ਤੇ ਨਰ ਨਾਨਕ ਨਿਹਫਲਹ ॥੬੫॥आतम रतं संसार गहं ते नर नानक निहफलह ॥६५॥हे नानक ! जिसका मन संसार में लीन रहता है,

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ਜੇਨ ਕਲਾ ਮਾਤ ਗਰਭ ਪ੍ਰਤਿਪਾਲੰ ਨਹ ਛੇਦੰਤ ਜਠਰ ਰੋਗਣਹ ॥जेन कला मात गरभ प्रतिपालं नह छेदंत जठर रोगणह ॥जिसकी शक्ति द्वारा माता के गर्भ में पालन होता है और पेट के रोग तकलीफ नहीं पहुँचाते। ਤੇਨ ਕਲਾ ਅਸਥੰਭੰ ਸਰੋਵਰੰ ਨਾਨਕ ਨਹ ਛਿਜੰਤਿ ਤਰੰਗ ਤੋਯਣਹ ॥੫੩॥तेन कला असथ्मभं सरोवरं नानक नह छिजंति तरंग तोयणह ॥५३॥नानक का

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ਭੈ ਅਟਵੀਅੰ ਮਹਾ ਨਗਰ ਬਾਸੰ ਧਰਮ ਲਖੵਣ ਪ੍ਰਭ ਮਇਆ ॥भै अटवीअं महा नगर बासं धरम लख्यण प्रभ मइआ ॥भयानक वन सरीखा क्षेत्र भी महा नगर में बदल जाता है। ऐसे धर्म के लक्षण तो प्रभु की कृपा से प्राप्त होते हैं। ਸਾਧ ਸੰਗਮ ਰਾਮ ਰਾਮ ਰਮਣੰ ਸਰਣਿ ਨਾਨਕ ਹਰਿ ਹਰਿ ਦਯਾਲ ਚਰਣੰ ॥੪੪॥साध संगम राम

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ਕੀਰਤਨੰ ਸਾਧਸੰਗੇਣ ਨਾਨਕ ਨਹ ਦ੍ਰਿਸਟੰਤਿ ਜਮਦੂਤਨਹ ॥੩੪॥कीरतनं साधसंगेण नानक नह द्रिसटंति जमदूतनह ॥३४॥नानक का कथन है कि साधु पुरुषों के साथ परमात्मा का कीर्तन करो, यमदूत दृष्टि भी नहीं करते॥ ३४॥ ਨਚ ਦੁਰਲਭੰ ਧਨੰ ਰੂਪੰ ਨਚ ਦੁਰਲਭੰ ਸ੍ਵਰਗ ਰਾਜਨਹ ॥नच दुरलभं धनं रूपं नच दुरलभं स्वरग राजनह ॥न ही धन-दौलत दुर्लभ है, न ही रूप-सौन्दर्य

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ਘਟਿ ਘਟਿ ਬਸੰਤ ਬਾਸੁਦੇਵਹ ਪਾਰਬ੍ਰਹਮ ਪਰਮੇਸੁਰਹ ॥घटि घटि बसंत बासुदेवह पारब्रहम परमेसुरह ॥वह परब्रह्म परमेश्वर घट घट में बसा हुआ है। ਜਾਚੰਤਿ ਨਾਨਕ ਕ੍ਰਿਪਾਲ ਪ੍ਰਸਾਦੰ ਨਹ ਬਿਸਰੰਤਿ ਨਹ ਬਿਸਰੰਤਿ ਨਾਰਾਇਣਹ ॥੨੧॥जाचंति नानक क्रिपाल प्रसादं नह बिसरंति नह बिसरंति नाराइणह ॥२१॥नानक विनयपूर्वक कामना करते हैं कि हे कृपानिधि नारायण ! ऐसी कृपा करो कि हम तुझे

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ਰਾਜੰ ਤ ਮਾਨੰ ਅਭਿਮਾਨੰ ਤ ਹੀਨੰ ॥राजं त मानं अभिमानं त हीनं ॥राज्य प्राप्त होता है तो मान भी घर कर लेता है। अभिमान के कारण अनादर भी प्राप्त होता है। ਪ੍ਰਵਿਰਤਿ ਮਾਰਗੰ ਵਰਤੰਤਿ ਬਿਨਾਸਨੰ ॥प्रविरति मारगं वरतंति बिनासनं ॥दरअसल दुनियादारी में सब नाशवान है। ਗੋਬਿੰਦ ਭਜਨ ਸਾਧ ਸੰਗੇਣ ਅਸਥਿਰੰ ਨਾਨਕ ਭਗਵੰਤ ਭਜਨਾਸਨੰ ॥੧੨॥गोबिंद भजन

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