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ਬਿਨੁ ਸੰਗਤਿ ਇਉ ਮਾਂਨਈ ਹੋਇ ਗਈ ਭਠ ਛਾਰ ॥੧੯੫॥बिनु संगति इउ मांनई होइ गई भठ छार ॥१९५॥इस तरह मानो जैसे भट्टी में पड़कर वस्तु जलकर राख हो जाती है, सत्संग के बिना व्यक्ति कुसंगति में नष्ट हो जाता है॥१६५॥ ਕਬੀਰ ਨਿਰਮਲ ਬੂੰਦ ਅਕਾਸ ਕੀ ਲੀਨੀ ਭੂਮਿ ਮਿਲਾਇ ॥कबीर निरमल बूंद अकास की लीनी भूमि मिलाइ