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ਧ੍ਰਿਗੰਤ ਮਾਤ ਪਿਤਾ ਸਨੇਹੰ ਧ੍ਰਿਗ ਸਨੇਹੰ ਭ੍ਰਾਤ ਬਾਂਧਵਹ ॥ध्रिगंत मात पिता सनेहं ध्रिग सनेहं भ्रात बांधवह ॥माता-पिता के साथ झूठा प्रेम धिक्कार योग्य है, भाइयों एवं रिश्तेदारों का प्रेम भी धिक्कार योग्य है। ਧ੍ਰਿਗ ਸ੍ਨੇਹੰ ਬਨਿਤਾ ਬਿਲਾਸ ਸੁਤਹ ॥ध्रिग स्नेहं बनिता बिलास सुतह ॥पत्नी से प्रेम एवं पुत्र के साथ खुशी भी धिक्कार योग्य है।

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ੴ ਸਤਿ ਨਾਮੁ ਕਰਤਾ ਪੁਰਖੁ ਨਿਰਭਉ ਨਿਰਵੈਰੁ ਅਕਾਲ ਮੂਰਤਿ ਅਜੂਨੀ ਸੈਭੰ ਗੁਰਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सति नामु करता पुरखु निरभउ निरवैरु अकाल मूरति अजूनी सैभं गुरप्रसादि ॥वह अनंतशक्ति परमपिता केवल एक है, उसका नाम सत्य है, वही सृष्टि की रचना करने वाला है, सर्वशक्तिमान है।वह भय से रहित है, उसका किसी से वैर नहीं वस्तुतः सब जीवों

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ਸਭੋ ਹੁਕਮੁ ਹੁਕਮੁ ਹੈ ਆਪੇ ਨਿਰਭਉ ਸਮਤੁ ਬੀਚਾਰੀ ॥੩॥सभो हुकमु हुकमु है आपे निरभउ समतु बीचारी ॥३॥सब ओर परमात्मा का हुक्म व्याप्त है, वह निर्भय परमेश्वर को एक रूप ही मानता है॥ ३॥ ਜੋ ਜਨ ਜਾਨਿ ਭਜਹਿ ਪੁਰਖੋਤਮੁ ਤਾ ਚੀ ਅਬਿਗਤੁ ਬਾਣੀ ॥जो जन जानि भजहि पुरखोतमु ता ची अबिगतु बाणी ॥जो व्यक्ति पुरुषोत्तम परमेश्वर

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ਲੋਗਾ ਭਰਮਿ ਨ ਭੂਲਹੁ ਭਾਈ ॥लोगा भरमि न भूलहु भाई ॥हे लोगो, हे मेरे भाई ! किसी भ्रम में मत भूलो। ਖਾਲਿਕੁ ਖਲਕ ਖਲਕ ਮਹਿ ਖਾਲਿਕੁ ਪੂਰਿ ਰਹਿਓ ਸ੍ਰਬ ਠਾਂਈ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥खालिकु खलक खलक महि खालिकु पूरि रहिओ स्रब ठांई ॥१॥ रहाउ ॥यह खलक (सृष्टि) खालिक (रचनहार) ने रची है और खालिक अपनी खलकत

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ਜਹ ਸੇਵਕ ਗੋਪਾਲ ਗੁਸਾਈ ॥जह सेवक गोपाल गुसाई ॥जहाँ भक्तजन ईश्वर की भक्ति करते हैं, । ਪ੍ਰਭ ਸੁਪ੍ਰਸੰਨ ਭਏ ਗੋਪਾਲ ॥प्रभ सुप्रसंन भए गोपाल ॥प्रभु के सुप्रसन्न होने से ਜਨਮ ਜਨਮ ਕੇ ਮਿਟੇ ਬਿਤਾਲ ॥੫॥जनम जनम के मिटे बिताल ॥५॥जन्म-जन्म के दुख मिट जाते हैं।॥ ५॥ ਹੋਮ ਜਗ ਉਰਧ ਤਪ ਪੂਜਾ ॥होम जग उरध तप

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ਮਨ ਮਹਿ ਕ੍ਰੋਧੁ ਮਹਾ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥ मन महि क्रोधु महा अहंकारा ॥ जिस व्यक्ति के मन में क्रोध एवं महा अहंकार भरा होता है, but if within one’s mind is lust and immense pride, ਪੂਜਾ ਕਰਹਿ ਬਹੁਤੁ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥ पूजा करहि बहुतु बिसथारा ॥ बेशक वह घण्टियाँ बजाकर, फूल भेंट करके अनेक प्रकार से पूजा-अर्चना

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ਮਨ ਮਹਿ ਕ੍ਰੋਧੁ ਮਹਾ ਅਹੰਕਾਰਾ ॥मन महि क्रोधु महा अहंकारा ॥जिस व्यक्ति के मन में क्रोध एवं महा अहंकार भरा होता है, ਪੂਜਾ ਕਰਹਿ ਬਹੁਤੁ ਬਿਸਥਾਰਾ ॥पूजा करहि बहुतु बिसथारा ॥बेशक वह घण्टियाँ बजाकर, फूल भेंट करके अनेक प्रकार से पूजा-अर्चना कर रहा हो। ਕਰਿ ਇਸਨਾਨੁ ਤਨਿ ਚਕ੍ਰ ਬਣਾਏ ॥करि इसनानु तनि चक्र बणाए ॥वह

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ਹਉਮੈ ਵਿਚਿ ਜਾਗ੍ਰਣੁ ਨ ਹੋਵਈ ਹਰਿ ਭਗਤਿ ਨ ਪਵਈ ਥਾਇ ॥हउमै विचि जाग्रणु न होवई हरि भगति न पवई थाइ ॥अभिमान में लीन होने से जागरण नहीं होता और न ही परमात्मा की भक्ति सफल होती है। ਮਨਮੁਖ ਦਰਿ ਢੋਈ ਨਾ ਲਹਹਿ ਭਾਇ ਦੂਜੈ ਕਰਮ ਕਮਾਇ ॥੪॥मनमुख दरि ढोई ना लहहि भाइ दूजै करम कमाइ

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ਪ੍ਰਭਾਤੀ ਮਹਲਾ ੩ ਬਿਭਾਸप्रभाती महला ३ बिभासप्रभाती महला ३ बिभास ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਵੇਖੁ ਤੂ ਹਰਿ ਮੰਦਰੁ ਤੇਰੈ ਨਾਲਿ ॥गुर परसादी वेखु तू हरि मंदरु तेरै नालि ॥हे जिज्ञासु ! गुरु की कृपा से तू देख ले, परमात्मा का घर तेरे साथ ही है। ਹਰਿ ਮੰਦਰੁ

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ਭਉ ਖਾਣਾ ਪੀਣਾ ਸੁਖੁ ਸਾਰੁ ॥भउ खाणा पीणा सुखु सारु ॥ईश्वर के भय में रहना ही खाना-पीना एवं सुखमय है। ਹਰਿ ਜਨ ਸੰਗਤਿ ਪਾਵੈ ਪਾਰੁ ॥हरि जन संगति पावै पारु ॥हरि-भक्त सत्संगत में संसार-सागर से मुक्त हो जाता है। ਸਚੁ ਬੋਲੈ ਬੋਲਾਵੈ ਪਿਆਰੁ ॥सचु बोलै बोलावै पिआरु ॥वह सत्य बोलता है और प्रेम की भाषा

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