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ਸਲੋਕੁ ਮਃ ੧ ॥सलोकु मः १ ॥श्लोक महला १॥ ਨਾਨਕ ਮੇਰੁ ਸਰੀਰ ਕਾ ਇਕੁ ਰਥੁ ਇਕੁ ਰਥਵਾਹੁ ॥नानक मेरु सरीर का इकु रथु इकु रथवाहु ॥हे नानक ! चौरासी लाख योनियों में सुमेरु पर्वत समान मानव-शरीर सर्वोच्च है। इस शरीर का एक रथ एवं एक रथवान है। ਜੁਗੁ ਜੁਗੁ ਫੇਰਿ ਵਟਾਈਅਹਿ ਗਿਆਨੀ ਬੁਝਹਿ ਤਾਹਿ ॥जुगु

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ਅੰਧੀ ਰਯਤਿ ਗਿਆਨ ਵਿਹੂਣੀ ਭਾਹਿ ਭਰੇ ਮੁਰਦਾਰੁ ॥अंधी रयति गिआन विहूणी भाहि भरे मुरदारु ॥अन्धी प्रजा ज्ञान से विहीन है और मृतक की भाँति चुपचाप अन्याय सहती है। ਗਿਆਨੀ ਨਚਹਿ ਵਾਜੇ ਵਾਵਹਿ ਰੂਪ ਕਰਹਿ ਸੀਗਾਰੁ ॥गिआनी नचहि वाजे वावहि रूप करहि सीगारु ॥ज्ञानी नृत्य करते हैं, बाजे बजाते और अनेक प्रकार के रूप धारण करके

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ਸਤਿਗੁਰੁ ਭੇਟੇ ਸੋ ਸੁਖੁ ਪਾਏ ॥सतिगुरु भेटे सो सुखु पाए ॥जो सतगुरु से मिलता है, उसे सुख प्राप्त होता है ਹਰਿ ਕਾ ਨਾਮੁ ਮੰਨਿ ਵਸਾਏ ॥हरि का नामु मंनि वसाए ॥और हरि का नाम वह अपने मन में बसा लेता है। ਨਾਨਕ ਨਦਰਿ ਕਰੇ ਸੋ ਪਾਏ ॥नानक नदरि करे सो पाए ॥हे नानक ! प्रभु

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ਓਨੑੀ ਮੰਦੈ ਪੈਰੁ ਨ ਰਖਿਓ ਕਰਿ ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਧਰਮੁ ਕਮਾਇਆ ॥ओन्ही मंदै पैरु न रखिओ करि सुक्रितु धरमु कमाइआ ॥वे कुमार्ग पर अपना पैर नहीं रखते और शुभ कर्म एवं धर्म कमाते हैं। ਓਨੑੀ ਦੁਨੀਆ ਤੋੜੇ ਬੰਧਨਾ ਅੰਨੁ ਪਾਣੀ ਥੋੜਾ ਖਾਇਆ ॥ओन्ही दुनीआ तोड़े बंधना अंनु पाणी थोड़ा खाइआ ॥वे दुनिया के बन्धनों को तोड़ देते

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ਸੂਖਮ ਮੂਰਤਿ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਕਾਇਆ ਕਾ ਆਕਾਰੁ ॥सूखम मूरति नामु निरंजन काइआ का आकारु ॥अलक्ष्य प्रभु का रूप सूक्ष्म है, उसका नाम निरंजन है और यह दुनिया ही उसका शरीर है। ਸਤੀਆ ਮਨਿ ਸੰਤੋਖੁ ਉਪਜੈ ਦੇਣੈ ਕੈ ਵੀਚਾਰਿ ॥सतीआ मनि संतोखु उपजै देणै कै वीचारि ॥दानी के मन में संतोष उत्पन्न होता है और वह

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ਗਿਆਨੁ ਨ ਗਲੀਈ ਢੂਢੀਐ ਕਥਨਾ ਕਰੜਾ ਸਾਰੁ ॥गिआनु न गलीई ढूढीऐ कथना करड़ा सारु ॥ज्ञान की प्राप्ति केवल बातों से नहीं होती, इसका कथन करना लोहे की भाँति कठिन है। ਕਰਮਿ ਮਿਲੈ ਤਾ ਪਾਈਐ ਹੋਰ ਹਿਕਮਤਿ ਹੁਕਮੁ ਖੁਆਰੁ ॥੨॥करमि मिलै ता पाईऐ होर हिकमति हुकमु खुआरु ॥२॥यदि भगवान की मेहर हो जाए तो ही ज्ञान

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ਵਿਸਮਾਦੁ ਪਉਣੁ ਵਿਸਮਾਦੁ ਪਾਣੀ ॥विसमादु पउणु विसमादु पाणी ॥पवन और जल भी विस्मय का कारण है। ਵਿਸਮਾਦੁ ਅਗਨੀ ਖੇਡਹਿ ਵਿਡਾਣੀ ॥विसमादु अगनी खेडहि विडाणी ॥बड़ी हैरानी है कि अनेक प्रकार की अग्नियाँ अदभुत खेलें खेलती हैं। ਵਿਸਮਾਦੁ ਧਰਤੀ ਵਿਸਮਾਦੁ ਖਾਣੀ ॥विसमादु धरती विसमादु खाणी ॥धरती का वजूद भी हैरानी का विषय है और जीवों की

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ਮਹਲਾ ੨ ॥महला २ ॥महला २॥ ਜੇ ਸਉ ਚੰਦਾ ਉਗਵਹਿ ਸੂਰਜ ਚੜਹਿ ਹਜਾਰ ॥जे सउ चंदा उगवहि सूरज चड़हि हजार ॥यदि सौ चन्द्रमा उदित हो जाएँ और हजारों ही सूर्य का उजाला हो जाए तो भी ਏਤੇ ਚਾਨਣ ਹੋਦਿਆਂ ਗੁਰ ਬਿਨੁ ਘੋਰ ਅੰਧਾਰ ॥੨॥एते चानण होदिआं गुर बिनु घोर अंधार ॥२॥संसार में इतना प्रकाश होते

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ਜਨਮ ਮਰਣ ਅਨੇਕ ਬੀਤੇ ਪ੍ਰਿਅ ਸੰਗ ਬਿਨੁ ਕਛੁ ਨਹ ਗਤੇ ॥जनम मरण अनेक बीते प्रिअ संग बिनु कछु नह गते ॥मेरे अनेक जन्म-मरण बीत गए हैं परन्तु प्रिय के संग बिना गति नहीं होती। ਕੁਲ ਰੂਪ ਧੂਪ ਗਿਆਨਹੀਨੀ ਤੁਝ ਬਿਨਾ ਮੋਹਿ ਕਵਨ ਮਾਤ ॥कुल रूप धूप गिआनहीनी तुझ बिना मोहि कवन मात ॥मैं कुल, रूप,

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ਨਿਧਿ ਸਿਧਿ ਚਰਣ ਗਹੇ ਤਾ ਕੇਹਾ ਕਾੜਾ ॥ निधि सिधि चरण गहे ता केहा काड़ा ॥ यदि निधियों, सिद्धियों के स्वामी प्रभु के चरण पकड़ लिए हैं तो अब कैसी चिंता हो सकती है। When one is in the refuge of God, the Master of all treasures and miraculous powers, then he has no fear

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