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ਏਹਾ ਭਗਤਿ ਜਨੁ ਜੀਵਤ ਮਰੈ ॥एहा भगति जनु जीवत मरै ॥सच्ची भक्ति यह है कि परमात्मा का दास जीवन के अहंत्व के प्रति मर जाए। ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਭਵਜਲੁ ਤਰੈ ॥गुर परसादी भवजलु तरै ॥गुरु की कृपा से ऐसा दास संसार सागर से पार हो जाता है। ਗੁਰ ਕੈ ਬਚਨਿ ਭਗਤਿ ਥਾਇ ਪਾਇ ॥गुर कै बचनि

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ਸੋ ਬੂਝੈ ਜਿਸੁ ਆਪਿ ਬੁਝਾਏ ॥सो बूझै जिसु आपि बुझाए ॥जिसे ईश्वर सूझ प्रदान करता है, केवल वही मनुष्य इस भेद को समझता है। ਗੁਰ ਪਰਸਾਦੀ ਸੇਵ ਕਰਾਏ ॥੧॥गुर परसादी सेव कराए ॥१॥गुरु की कृपा से ही मनुष्य प्रभु की सेवा-भक्ति करता है॥ १॥ ਗਿਆਨ ਰਤਨਿ ਸਭ ਸੋਝੀ ਹੋਇ ॥गिआन रतनि सभ सोझी होइ ॥गुरु

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ਤਨੁ ਮਨੁ ਅਰਪੇ ਸਤਿਗੁਰ ਸਰਣਾਈ ॥तनु मनु अरपे सतिगुर सरणाई ॥वह अपना तन-मन सतिगुरु को अर्पण कर देता है और उनका आश्रय लेता है। ਹਿਰਦੈ ਨਾਮੁ ਵਡੀ ਵਡਿਆਈ ॥हिरदै नामु वडी वडिआई ॥उसकी बड़ी महानता यह है कि उसके हृदय में हरि का नाम विद्यमान है। ਸਦਾ ਪ੍ਰੀਤਮੁ ਪ੍ਰਭੁ ਹੋਇ ਸਖਾਈ ॥੧॥सदा प्रीतमु प्रभु होइ

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ਜੋ ਮਨਿ ਰਾਤੇ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਲਾਇ ॥ जो मनि राते हरि रंगु लाइ ॥ जिनका मन हरि-रंग में रंग जाता है,” Those whose minds are imbued with God’s Love, ਤਿਨ ਕਾ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਲਾਥਾ ਤੇ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਮਿਲੇ ਸੁਭਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥ तिन का जनम मरण दुखु लाथा ते हरि दरगह मिले सुभाइ ॥१॥

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ਜੋ ਮਨਿ ਰਾਤੇ ਹਰਿ ਰੰਗੁ ਲਾਇ ॥जो मनि राते हरि रंगु लाइ ॥जिनका मन हरि-रंग में रंग जाता है,” ਤਿਨ ਕਾ ਜਨਮ ਮਰਣ ਦੁਖੁ ਲਾਥਾ ਤੇ ਹਰਿ ਦਰਗਹ ਮਿਲੇ ਸੁਭਾਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥तिन का जनम मरण दुखु लाथा ते हरि दरगह मिले सुभाइ ॥१॥ रहाउ ॥उनका जन्म-मरण के चक्र का दुख दूर हो जाता है

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ਗੁਰ ਕਾ ਦਰਸਨੁ ਅਗਮ ਅਪਾਰਾ ॥੧॥गुर का दरसनु अगम अपारा ॥१॥परन्तु गुरु का दर्शन (अर्थात् शास्त्र) अगम्य एवं अपार है॥ १॥ ਗੁਰ ਕੈ ਦਰਸਨਿ ਮੁਕਤਿ ਗਤਿ ਹੋਇ ॥गुर कै दरसनि मुकति गति होइ ॥गुरु के दर्शन (शास्त्र) से मुक्ति एवं गति हो जाती है। ਸਾਚਾ ਆਪਿ ਵਸੈ ਮਨਿ ਸੋਇ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥साचा आपि वसै मनि

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ਬਾਬਾ ਜੁਗਤਾ ਜੀਉ ਜੁਗਹ ਜੁਗ ਜੋਗੀ ਪਰਮ ਤੰਤ ਮਹਿ ਜੋਗੰ ॥बाबा जुगता जीउ जुगह जुग जोगी परम तंत महि जोगं ॥हे बाबा ! असल में वही योगी है, जो युगों-युगांतर तक परम तत्व परमात्मा के योग में लीन रहता है। ਅੰਮ੍ਰਿਤੁ ਨਾਮੁ ਨਿਰੰਜਨ ਪਾਇਆ ਗਿਆਨ ਕਾਇਆ ਰਸ ਭੋਗੰ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥अम्रितु नामु निरंजन पाइआ गिआन

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ਆਸਾ ਘਰੁ ੫ ਮਹਲਾ ੧आसा घरु ५ महला १आसा घरु ५ महला १ ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ਭੀਤਰਿ ਪੰਚ ਗੁਪਤ ਮਨਿ ਵਾਸੇ ॥भीतरि पंच गुपत मनि वासे ॥काम, कोध, लोभ, मोह एवं अहंकार ये पाँचों ही विकार मेरे मन में छिपकर

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ੴ ਸਤਿਗੁਰ ਪ੍ਰਸਾਦਿ ॥ੴ सतिगुर प्रसादि ॥ईश्वर एक है, जिसे सतगुरु की कृपा से पाया जा सकता है। ਆਸਾ ਘਰੁ ੩ ਮਹਲਾ ੧ ॥आसा घरु ३ महला १ ॥आसा घरु ३ महला १ ॥ ਲਖ ਲਸਕਰ ਲਖ ਵਾਜੇ ਨੇਜੇ ਲਖ ਉਠਿ ਕਰਹਿ ਸਲਾਮੁ ॥लख लसकर लख वाजे नेजे लख उठि करहि सलामु ॥“(हे बन्धु !)

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ਆਸ ਪਿਆਸੀ ਸੇਜੈ ਆਵਾ ॥आस पिआसी सेजै आवा ॥अपने पति से मिलन की इच्छा एवं प्यास लेकर यदि मैं सेज पर आती भी हूँ तो ਆਗੈ ਸਹ ਭਾਵਾ ਕਿ ਨ ਭਾਵਾ ॥੨॥आगै सह भावा कि न भावा ॥२॥मुझे पता नहीं है कि मैं प्रियतम-प्रभु को अच्छी लगती हूँ कि नहीं ॥ २॥ ਕਿਆ ਜਾਨਾ ਕਿਆ

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